बुरी होती है बुराई दोस्तो

बुरा मत देखों, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो



गांधी जी के तीन बंदर तीन बुराइयों (बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहोे) से सचेत रहने की प्रेरणा देते हैं। यह सही है कि अनेक बुराइयों का कारण हमारी सोच, मुंह और नेत्र हंै। बुराई को रोकने व उनसे लड़ने के लिए इन्हीं तीनों को सावधान रखना जरूरी है। नेत्र और विचारों के माध्यम से बुराई की बनी रूपरेखा वाणी के माध्यम से बाहर आती है। फिर समाज में उस बुराई की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इसी प्रकार एक से और अनेक लोगों के माध्यम से यह क्रिया जब अनवरत जारी रहती है तब समाज विविध बुराइयों से भर जाता है। यह तीनों बुराईयां वैचारिक, वाणीगत और दृष्टिगत हैं, जिनसे समाज में सदैव विघटन के ही तत्व प्रोत्साहित होते हैं। अतः समाज पर होने वाले भविष्य के संभावित विकारों को रोकने तथा इन तीनों को मर्यादित व्यवहार की सीमा में सम्बद्ध करने की दृष्टि से भारत के अतिरिक्त विश्व के अनेक देशों में तीन बंदरों का संदेश प्रचलित है। महात्मा गांधी से पूर्व भी विश्व के अनेक देशों में तीन बंदरों की जानकारी मिलती है।


ऐसा माना जाता है 17वीं शताब्दी में जापान में स्थित निक्को के एक प्रसिद्ध धर्मस्थल तोशोगू के दरवाजे पर चित्रयुक्त यह मुहावरा खुदा हुआ था। हिदारी जिंगोरो द्वारा इसकी नक्काशी की गयी है और ऐसा माना जाता है कि यह कन्फ्यूशियश के कोड आफ कंडक्ट से लिया गया है। इसमें कुल 8 पैनल हैं, जिसमें तीन बुद्धिमान बंदर पैनल 2 में मिलता है। तीन बंदरों के नाम इस प्रकार हैं-मिजारू (बुरा मत देखो), किकाजारू (बुरा मत सुनो) एवं इवाजारू (बुरा मत कहो)। इसी प्रकार चीन में ईसा पूर्व दूसरी से चैथी सदी में कन्फ्यूसियस के सूक्तिसंग्रह में इसी प्रकार की सूक्ति मिलती है जो बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो की प्रेरणा देता है। \


जापान के शिंटो धर्म में बंदरों की बहुत महत्ता है। इस धर्म में इन्हें दूत (संदेश पहुंचाने वाला) के रूप में माना जाता है। यही नहीं हर बारह वर्ष पर बंदरों का एक त्योहार भी आयोजित किया जाता है तथा कोशिन  पर्व के हर 16 वर्ष बाद एक विशेष त्योहार मनाया जाता है। कोशिन पर्व हर 60वें दिन मनाया जाता है। इन तीन बंदरों को अंग्रेजी में ‘द थ्री मिस्टिक एप्स’ के रूप में अर्थात ‘द गाड्स आफ द रोड्स’ के रूप में मान्यता दी गयी है। पुरानी मान्यता के अनुसार ‘हर व्यक्ति के बुरे कार्य की सूचना स्वर्ग में होती है, जब तक कि वह बुरे कार्यों का त्याग न करे’।


विश्व में जिस प्रकार जागरूकता बढ़ी है तथा व्यक्ति वैचारिक दृष्टि से समुन्नत हुआ है, उसी प्रकार जीवन जीने के आयाम भी बढ़े हैं। यह बात सच है कि इंसान चाहे पृथ्वी के किसी भी भाग के हों, उनकी बुनियादी आवश्यकता एक सी ही होती है परन्तु जो वैचारिक दृष्टि से स्वच्छंद होकर इस जीवन को परम स्थायी समझकर अपने हर कार्य को चाहे वह अच्छा हो या बुरा, नैतिक समझ लेते हैं, उनके माध्यम से एक ऐसे वातावरण को बल मिलता है जो सतत बुराई को प्रेरित करता रहता है। इन तीन बंदरों का उदाहरण इस बात का संकेत हैं कि मनुष्य के कृत्य से बुराई उत्साहित और अच्छाई हतोत्साहित होने लगती है, तब समाज के सात्विक और मानवीयता के पक्षधरों के माध्यम से एक ऐसे वातावरण का निर्माण किया जाता है, जिससे नैतिकता को बल मिले तथा बुराई के संभावित दुष्परिणामों से सबक लेकर सद्पथगामी बनाये।


समाज में बढ़ रही बुराइयों के आयाम के देखते हुए और लोगों में जागरूता को जगाने की दृष्टि से इंडियन पीस मिशन, इंटरनेशनल पीस मिशन के संस्थापक डा. रमेश कुमार पासी (एम.बी.बी.एस. एम.डी.) ने दो बंदरों को इसमें सूचीबद्ध किया है जो ‘शिजारू-बुरा मत सोचो तथा सारू: बुरा मत करो’ के संकेतक हैं।


यद्यपि बुराई को कहने, देखने और सुनने से समाज में विकृति तो फैलती ही है परन्तु बुराई को सोचने और करने से इस विकृति को तीव्र गति मिल जाती है। आज पूरे विश्व में चाहे आतंकवाद हो, क्षेत्रवाद हो, भाई-भतीजावाद हो, लूट खसोट, बलात्कार, व्यभिचार, महंगाई, भ्रष्टाचार आदि हो उन सबके पीछे मात्र व्यक्ति की गलत सोच और इसका क्रियान्वयन है। डा. पासी का मानना है कि सारे संसार के कायाकल्प, उन्नति और अवनति के पीछे मात्र सोच और उसका क्रियान्वयन ही है। यदि सोच में विकृति न होती तो पूरे विश्व के देश अपने-अपने देश की सीमा रेखा नहीं खींचते। एक दूसरे से इतना भय हो गया है कि अपने देश और सीमा की सुरक्षा के लिए तमाम तरह के सुरक्षा उपकरण एवं अत्याधुनिक टेक्नोलाजी विकसित कर स्थापित की जा रही है और ऐसा भी नहीं है कि यह क्रम एक समय के पश्चात बंद हो अपितु और उन्नत टेक्नोलोजी के लिए भारी मात्रा में धन व्यय किये जा रहे हैं। थल, आकाश और जल-इन तीनों पर इतनी सुरक्षा बढ़ा दी गयी है कि इंसान को एक देश से दूसरे जाने के लिए तमाम प्रकार की कागजाती कार्यवाई पूरी करनी पड़ती है, तब कहीं प्रवेश की अनुमति मिलती है। 


किसी देश की सरकार अच्छी है और किसी देश की सरकार भ्रष्ट है, कहीं के नेता समर्पित हैं और कहीं के नेता सिर्फ भ्रष्टाचार के लिए समर्पित हैं-इन सभी पीछे भी सोच और तदनुरूप कार्य ही प्रमुख कारण है। प्राचीन काल से भारत शिक्षा के क्षेत्र में जिस उत्कर्ष पर स्थापित था और जिस प्रकार शिक्षा के क्षेत्र में हमारी अवनति हुई है और हो रही है, उसका भी कारण उच्च और निम्न सोच और तदनुरूप कार्य ही है।


डा. रमेश कुमार पासी ने अपने निरंतर चिन्तन के उपरांत विकसित कुछ सिद्धान्तों जो व्यक्ति, समाज और देश में शान्ति स्थापित करने में सक्षम है, को भारत सहित विश्व के देशों में प्रसारित करने के लिए अपने इंडियन पीस मिशन एवं इंटरनेशनल पीस मिशन के माध्यम से प्रयासरत हैं। यह विचारणीय है कि विचार परिवर्तन के लिए इन सिद्धान्तों में सरकार से लेकर समाज निर्माण के अंतिम चरण तक की रूपरेखा तैयार की गयी है। अतः इसी विचारों के मध्य से सर्वम, सर्वाय, सर्वस्व, सर्वे शान्ति भवतु का प्रस्फुरण भी हुआ है।


अतः इन पांच बंदरों के माध्यम से समाज में यह संदेश प्रेषित करने का एक प्रयास है कि बुरा देखने, बुरा बोलने, बुरा सुनने, बुरा सोचने तथा बुरा करने पर व्यक्ति अपने लिए, परिवार के लिए, समाज के लिए और देश के लिए हानिकारक पथ का सृजन करता है।


अच्छी होती है अच्छाई दोस्तों-बुरा मत सोचो, बुरा मत करो


(लेखिका, डा. कैटी, टैक्सास, अमेरिका में इंटरनेशनल पीस मिशन की प्रतिनिधि हैं)