स्टालिन की रणनीति मंे नहीं फंसे सेल्वम


लोकसभा चुनाव के लिए सभी राज्यों मंे शतरंज की तरह गोटियां चली जा रही हैं। दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु मंे दोनों क्षेत्रीय पार्टियों मंे नये नेतृत्व को इस बार का चुनाव लड़ना है। अन्नाद्रमुक मंे जयललिता का चेहरा नहीं होगा तो द्रमुक मंे भी एम. करुणानिधि का करिश्माई नेतृत्व अब दूसरी दुनिया मंे जा चुका है। अन्नाद्रमुक मंे कई नेता हैं और स्व. जयललिता की अभिन्न सहेली शशिकला के भतीजे ईवी दिनाकरण ने अलग पार्टी बना रखी है जबकि पन्नीर सेल्वम और पलानी स्वामी ने अन्नाद्रमुक की सरकार को संभाल रखा है। इसी तरह द्रमुक मंे एम. स्टालिन ने कांग्रेस के साथ समझौता कर रखा और वे चाहते थे कि पट्टाली मक्कल कत्ची (पीएमके) भी उनके साथ जुड़ जाए। वे यह भी प्रयास कर रहे थे कि पीएमके किसी तरह से अन्नाद्रमुक के साथ न जुड़ने पाये लेकिन उनकी रणनीति सफल नहीं हो पायी है। पीएमके ने अन्नाद्रमुक के साथ भाजपा से भी समझौता कर लिया है। उधर, द्रमुक के साथ वामपंथी दल शामिल हैं लेकिन अन्नाद्रमुक और भाजपा का यह गठबंधन भारी पड़ सकता है। इस बीच तमिलनाडु की राजनीति मंे कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन भी देखने को मिले हैं। दक्षिण भारतीय फिल्मों के महानायक रजनीकांत ने घोषणा कर दी कि चुनाव नहीं लड़ेंगे और न किसी का समर्थन करेंगे। उधर, दूसरे फिल्मी हीरो कमल हासन ने कांग्रेस से समझौता कर रखा है लेकिन पुलवामा मंे आतंकी हमले के बाद उन्होंने कश्मीर मंे आत्मनिर्णय का बयान देकर जनता को नाराज कर दिया है।



तमिलनाडु और पांडिचेरी को मिलाकर लोकसभा की 40 सीटें हैं जो केन्द्र मंे सरकार बनाने के लिहाज से महत्वपूर्ण मानी जाती है। भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को दक्षिण और पूर्वी भारत मंे अपना समीकरण मजबूत करना पड़ रहा है। इसी लिहाज से भाजपा ने वहां के मौजूदा सत्तारूढ़ दल अन्नाद्रमुक से समझौता किया है। गत 18 फरवरी को भाजपा और अन्नाद्रमुक के बीच समझौता हो गया। इस समझौते के तहत भाजपा राज्य की पांच लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। लोगों को यह सुनने मंे आश्चर्य जैसा लग सकता है लेकिन दक्षिण भारत मंे भाजपा को इस राज्य मंे पैर जमाने के लिए किसी मजबूत साथी की जरूरत है। समझौते मंे पीएमके को भी शामिल किया गया है। पीएमके को सात सीटों पर लड़ने के साथ राज्यसभा की एक सीट दी गयी है। इस प्रकार तमिलनाडु मंे भाजपा और पीएमके ने 12 लोकसभा सीटें हासिल कर लीं और अन्नाद्रमुक को 28 लोकसभा सीटें मिल रही हैं। अन्नाद्रमुक के साथ डीएमडीके भी शामिल है और यह उन दोनों पर छोड़ दिया गया है कि आपस मंे कैसे सीटें बांटेगी। अनुमान लगाया जा रहा है कि डीएमडीके को तीन से चार तक सीटें दी जा सकती हैं। अन्नाद्रमुक को विशेष रूप से विधानसभा की उन 21 सीटों की चिंता थी जो शशिकला के भतीजे दिनाकरन के चलते पार्टी से बगावत कर गये थे और विधानसभाध्यक्ष ने उन्हंे अयोग्य घोषित कर दिया। अब इन 21 सीटों पर उपचुनाव होना है और भाजपा ने कहा है कि वह उपचुनाव मंे इन सीटों पर अन्नाद्रमुक का समर्थन करेगी।



द्रमुक नेता एमके स्टालिन ने इस गठबंधन से पीएमके को दूर रखने का बहुत प्रयास किया। उन्हांेने कहा अन्नाद्रमुक के नेताओं ने पीएमके के साथ समझौता करके अपनी नेता स्व. जयललिता का अपमान किया है। स्टालिन कहते हैं कि पीएमके के मुखिया डा. अम्बुमणि रामदौस ने सत्ताधारी दल अन्नाद्रमुक पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाये थे। इतना ही नहीं पीएमके नेता ने पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के ऊपर लगाये गये भ्रष्टाचार के आरोपों पर एक किताब भी निकाली थी। इस पुस्तक को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई. पलानी स्वामी और उपमुख्यमंत्री पन्नीर सेल्वम को सौंपा गया था। इस प्रकार एमके स्टालिन ने भरपूर प्रयास किया था कि पीएमके का अन्नाद्रमुक के साथ चुनावी गठबंधन न हो सके। इस बार के लोकसभा चुनाव मंे विपक्षी दल डीएमके (द्रमुक) कांग्रेस और वामपंथी दल एक साथ चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। इस गठबंधन मंे कमल हासन की नई पार्टी के भी जुड़ने की संभावना है लेकिन अभी-अभी कमल हासन ने कश्मीर मंे मत विभाजन का जो बयान दिया है, उसके बाद उनको यूपीए के साथ जोड़ना कांग्रेस के लिए घातक हो सकता है। यूपीए के साथ पीएमके को लेने का प्रयास जरूर चल रहा था। यहां पर
ध्यान रखने की बात है कि पिछले लोकसभा चुनाव मंे अन्नाद्रमुक, भाजपा और पीएमके ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। चुनाव मंे अन्नाद्रमुक को 37 सांसद मिले थे जबकि भाजपा के खाते मंे एक और पीएमके को भी एक सांसद मिल पाया था। इस बार के गठबंधन मंे भाजपा को लगता है कि उसे 39 सीटें तो मिलनी ही चाहिए। केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने गठबंधन की घोषणा करते हुए कहा कि दिवंगत जयललिता के सम्मान मंे यह गठबंधन हुआ है और इसे सभी 40 सीटों पर विजयश्री हासिल होगी। यह गठबंधन माघी पूर्णिमा के दिन हुआ है, इसलिए भाजपा इसे शुभ मुहूर्त भी मान रही है।



तमिलनाडु में इस बार लोकसभा चुनाव द्रमुक और अन्नाद्रमुक दोनों के नये नेतृत्व की परीक्षा लेगा। पहले यहां रजनीकांत और कमल हासन को लेकर स्टार वार की चर्चा हो रही थी लेकिन अब द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच ही फिर से रस्साकसी होनी है। अभी एक तीसरा पक्ष ईटीवी दिनाकरन का है जो अपने को जयललिता का वास्तविक वारिस मान रहे हैं। आरके नगर विधानसभा सीट के उपचुनाव मंे जनता ने उन्हें विजयी बनाकर यह साबित भी कर दिया था। उस चुनाव मंे पलानी स्वामी और पन्नीर सेल्वम के साथ एमके स्टालिन की ताकत पर दिनाकरन भारी पड़े थे। अन्नाद्रमुक सुप्रीमों जयललिता के निधन के बाद पार्टी अंदरूनी कलह और गुटबाजी का सामना कर रही है और विधानसभा चुनाव से पहले उसे अपनी मजबूती साबित करना है। भाजपा और अन्नाद्रमुक के बीच समझौते के लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के प्रयास को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल को इसी सिलसिले मंे चेन्नई भेजा था। इसके बाद स्वयं श्री अमित शाह वहां पहुंचे। अन्नाद्रमुक के नेता पलानी स्वामी और पन्नीर सेल्वम ने भी समय की नजाकत को समझा है क्योंकि उन्हंे अपनी 25 सीटों मंे से जीके वासन की टीएमसी को, एन रंगास्वामी की एनआरसी और के. कृष्णास्वामी की पीटी जैसी पार्टियों को भी सीटें देनी पड़ रही हैं। राजनीतिक जानकारों के अनुसार तमिलनाडु मंे 2019 की सियासी लड़ाई काफी दिलचस्प होगी। 


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