राजनीतिक दल अपना नेता किसको चुनते हैं अथवा मनोनीत करते हैं, यह उनका अधिकार है। उनका आंतरिक मामला है, इसलिए ज्यादा कुछ कहना ठीक नहीं है। राजनीतिक दलों में अब संगठन के चुनाव के मामले में यही कहना उचित होगा कि हमाम के अंदर सभी नंगे होते हैं। संगठन के पदाधिकारी अब मनोनीत कर दिये जाते हैं और चुनाव का दिखावा होता है। कोई भी पार्टी अब लोकतांत्रिक तरीके से अपना नेता नहीं चुनती है। उसे लगता है कि अमुक नेता चुनाव की नैया पार लगा सकता है तो उसे बागडोर सौंप दी जाती है। कुछ लोग विरोध भी करते हैं तो उनकी आवाज दबा दी जाती है। हालांकि इन्हीं राजनीतिक दलों से लोग लोकसभा और विधान सभा चुनाव में जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। घोषित रूप से ये सभी जन सेवी कहे जाते हैं। सरकार ने उनके सेवाकाल के बाद भारी भरकम पेंशन की व्यवस्था भी कर रखी है। इसलिए राजनीतिक दलों के नेताओं से जनता का भी संबंध होता है। उनका आचरण कैसा है, इस पर जनता को टिप्पणी करने का अधिकार है। पंजाब में आम आदमी पार्टी ने अपनी मजबूत पकड़ बनायी है। सन् 2014 में जब नरेन्द्र मोदी का जादू चल रहा था और बसपा जैसी पार्टी को एक भी सांसद नहीं मिला, तब आम आदमी पार्टी को पंजाब में ही चार सांसद मिले थे। नेताओं की लोकप्रियता का जब सर्वे किया जाता है तो नरेन्द्र मोदी के बाद अरविन्द केजरीवाल का नाम लोग लेते हैं। इसलिए पंजाब में अरविन्द केजरीवाल ने भगवंत मान को पार्टी की कमान सौंपी है, जिस पर तरह-तरह के विचार सामने आ रहे हैं।
इसी 30 जनवरी को भगवंत मान को आम आदमी पार्टी की पंजाब इकाई का अध्यक्ष बनाया गया है। पंजाब की विधानसभा में आम आदमी पार्टी ही मुख्य विपक्षी पार्टी है। भगवंत मान पर संसद में शराब पीकर आने का आरोप लगा था। भगवंत मान के चलते अरविन्द केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी की भी बदनामी हुई थी। अब इस पार्टी और उसके पंजाब में मुखिया बनाये गये भगवंत मान की फिर से चर्चा हो रही है। भगवंत मान सांसद है और संभवतः 2019 के चुनाव में भी वे प्रत्याशी होंगे। इसलिए भगवंत मान के बारे में जब दिल्ली में डिप्टी सीएम मनीष सिसौदिया ने सफाई दी कि भगवंत मान ने पहली जनवरी से शराब छोड़ दी है, तो हास्यास्पद लगा। हालांकि पंजाब में नशे की बढ़ती लत गंभीर चिंता का विषय बन गयी थी और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इसी मामले को जोर शोर से उठाया था। नशा माफियाओं से सांठगांठ में तत्कालीन प्रकाश सिंह बादल सरकार के एक मंत्री का नाम भी सामने आया था। वह मंत्री बादल परिवार का निकटतम बताया गया था और मामला तब ज्यादा संदिग्ध हो गया, जब इस मामले की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय में एक वरिष्ठ अधिकारी का अचानक तबादला कर दिया गया और पश्चिम बंगाल के शारदा चिटफण्ड घोटाले की जांच करने के लिए भेजा गया था। इस प्रकार राज्य की जनता के मन में यह संदेह बैठ गया था कि तत्कालीन पंजाब सरकार नशे के सौदागरों के खिलाफ कार्रवाई करने में गंभीर नहीं है और जनता ने बादल की पार्टी को हटाकर कांग्रेस को सत्ता सौंपी। उस समय सरकार बनाने का दावा आम आदमी पार्टी भी कर रही है और दिल्ली के बाद आम आदमी पार्टी को उल्लेखनीय सफलता भी मिली। आम आदमी पार्टी वहां मुख्य विपक्षी दल है तो भगवंत मान अब पार्टी को कितना आगे ले जा पाएंगे। भगवंत मान पहले भी प्रदेश अध्यक्ष बने थे लेकिन अरविन्द केजरीवाल ने उनसे मजीठिया से माफी मांगने को कहा था इसी के बाद मान ने पद छोड़ दिया था। अब दूसरी बार भगवंत मान ने प्रधान का पद राज्य में संभाला है।
भगवंत मान को आम आदमी प्रमुख बनाने से पहले मनीष सिसोदिया ने कोरकमेटी की बैठक की थी और मान को राजनीतिक मामलों की कमेटी द्वारा लिये गये फैसले से अवगत कराया। भगवंत मान ने कहा कि पार्टी प्रमुख अरविन्द केजरीवाल ने जो माफी मांगने की बात कही थी, उसके पीछे की साजिश के बारे में मुझे अब पता चल गया है। मान कहते हैं कि बादल परिवार और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह आम आदमी पार्टी को खत्म करने का प्रयास कर रहे हैं जबकि आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता ऐसा नहीं होने देंगे। भगवंत मान ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उनके परिवारीजनों पर आरोप लगाया कि वे नशे के कारोबारियों से मिलकर पंजाब की जवानी (युवाओं) को तबाह कर रहे हैं और कैप्टन अमरिन्दर की सरकार बदलों को बचाने में जुटी है। कांग्रेस के विधायक ही कह रहे है कि राज्य सरकार बादल परिवार के सदस्यों और नशे के तस्करों पर कार्रवाई करे।
आम आदमी पार्टी को फिलहाल पंजाब से ही ज्यादा से ज्यादा सांसद जुटाने की उम्मीद है। दिल्ली के मुख्यमंत्री और पार्टी संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने पांच राज्यों से कम से कम 33 सांसद जुटाने की रणनीति बनायी है। ये राज्य हैं दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, गोवा और चंडीगढ़। आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनावों में पूरी तरह से जुट गयी है। पिछले लोकसभा चुनाव की तरह आमआदमी पार्टी 2019 में भी सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी। पार्टी ने इस मामले में जो रणनीति बनायी है, इसके तहत हरियाणा से 10, पंजाब से 13, दिल्ली से 7, गोवा से 2 और चण्डीगढ़ से एक सांसद जुटाया जाएगा। दिल्ली में 7 सांसद पाने के लिए आम आदमी पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से मंत्रणा की थीं। उस समय दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन हुआ करते थे जिन्होंने बाद में स्वास्थ्य - कारणों से प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ा था और श्रीमती शीला दीक्षित को फिर से कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया है। आम आदमी पार्टी से दिल्ली में कांग्रेस का लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन हो सकता है लेकिन पंजाब में यह समझौता नहीं होगा।
आम आदमी पार्टी के दिल्ली प्रदेश संयोजक गोपाल राय ने बताया था कि हरियाणा में पार्टी प्रमुख अरविन्द केजरीवाल ने जिस प्रकार से रैलिया की हैं, उनके सकारात्मक नतीजे देखने को मिले है। हरियाणा की सभी लोकसभा सीटों के पदाधिकारियों के साथ डोर टु डोर प्रचार किया जा रहा है। इसी प्रकार का कार्यक्रम दिल्ली में भी चल रहा है। पंजाब में पार्टी के लिए हालात मुश्किल नजर आते हैं। पार्टी का कहना है कि 15 फरवरी तक दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में सभी उम्मीदवार तय हो जाएंगे। लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने जो रणनीति बनायी है उसके तहत 10 घरों पर एक विजय प्रमुख तैनात किया जाएगा। इन विजय प्रमुखों का कार्य घर के मतदाताओं को मतदान केन्द्र तक पहुंचाना होगा। दिल्ली में 62 हजार 500 और हरियाणा में 4 लाख 62 हजार 500 विजय प्रमुख तैनात किये जा रहे है। पंजाब में भगवंत मान को यह कार्य करना है। पंजाब में सुखपाल सिंह खैहरा की पार्टी पंजाबी एकता पार्टी भी भगवंत मान के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। लोगों का मानना है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी बेजान हो चुकी है और भगवंत मान को उसमें संजीवनी डालनी होगी।