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उत्तर प्रदेश मंे लोकसभा चुनाव 2019 की तैयारी मंे योगी आदित्यनाथ किसी भी तरह से सपा और बसपा के गठबंधन को निष्प्रभावी करना चाहते हैं। कांग्रेस ने प्रियंका गांधी वाड्रा को उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की जिम्मेदारी सौंपी है और ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी यूपी मंे भेजा लेकिन भाजपा को मुख्य मुकाबले मंे सपा-बसपा का गठबंधन ही नजर आता है। इसमंे भी भाजपा का मुख्य 


ध्यान दलित वोट बैंक पर है। दलितों को हिन्दू समाज का एक महत्वपूर्ण अंग मानते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रारम्भ से ही दलितों से तालमेल बढ़ाने का आग्रह करता रहा है। अब यह आग्रह एक रणनीति के तौर पर लागू किया जाएगा। दलितों के साथ सहभोज का कार्यक्रम भी जोर शोर से चलाया जाएगा। मकर संक्रांति के बाद सहभोज मंे खिचड़ी का विशेष महत्व होता है, इसलिए भाजपा ने भी खिचड़ी भोज का आयोजन किया है।


लखनऊ मंे विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो गया। राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के विधायकों ने हंगामा किया और राज्यपाल पर कागज के गोले फंेके। यह घटना भी सपा-बसपा के एक होने का प्रमाण दे रही है और दोनों दल यही बताना चाहते हैं कि मामला कोई भी हो लेकिन सपा-बसपा के लोग एक साथ खड़े दिखेंगे। इसलिए भाजपा को इस गठबंधन से दलित वोट बैंक मंे सेंध लगाना आसान भी दिख रहा है


और खिचड़ी भोज का आयोजन इस दिशा मंे उठाया गया एक कदम माना जा रहा है। भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव मंे दलित समुदाय के लिए आरक्षित सभी सीटों पर जीत हासिल की थी, इसलिए योगी की सरकार ने इसे फिर से प्राथमिकता पर रखा है।
भाजपा ने उत्तर प्रदेश के प्रत्येक शहर मंे खिचड़ी भोज का आयोजन करने की रणनीति बनायी है। यह कार्यक्रम 5 फरवरी से शुरू हुआ है और 25


फरवरी तक चलेगा। प्रदेश की राजनीति मंे दलित समुदाय का वोट काफी महत्वपूर्ण है। राज्य मंे 21 फीसद दलित मतदाता माने जा रहे हैं और इनका एकमुश्त झुकाव किसी भी पार्टी को सत्ता की चाबी सौंप सकता है। भाजपा ने 2014 के लेाकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव मंे दलितों का समर्थन हासिल करने मंे सफलता भी प्राप्त की थी। उत्तर प्रदेश की लोकसभा की कुल 80 सीटों मंे 17 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं।


इसी प्रकार विधानसभा की 403 विधानसभा सीटों मंे से 86 सीटें आरक्षित है। भाजपा ने लोकसभा की सभी 17 सीटें जीती थीं, और विधानसभा की भी 76 सीटों पर भगवा फहराया था। इस समीकरण को 2019 मंे कैसे अमली जामा पहनाया जा सके, इस पर योगी ने रणनीति बनायी है। माना जा रहा है कि सपा और बसपा का गठबंधन हो जाने के बाद प्रदेश की राजनीति के हालात बदल गये हैं और भाजपा ने 2014 तथा 2017 मंे जो समीकरण बनाया था, वो बिगड़ सकता है।


भाजपा के नेता हालांकि यही कहते हैं कि केन्द्र और राज्य मंे सरकार बनने के बाद दलितों के हित में ज्यादा काम किये गये हैं लेकिन दलितों का एक बड़ा वर्ग लगातार यह आरोप भी लगा रहा था कि भाजपा के सत्ता मंे आने के बाद उत्तर प्रदेश मंे भी दलित उत्पीड़न के मामले बढ़े हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस मामले मंे खीझ कर ही कहा था कि मुझे सजा दे दो लेकिन दलितों पर उत्पीड़न मत करो। इस तरह दलितों के बड़े वर्ग ने जो आरोप लगाया है उसमंे सच्चाई की झलक भी दिखती है।


इस आरोप को मिटाने के लिए ही भाजपा ने अलग-अलग मंडलों मंे खिचड़ी भोज के जरिए दलितों को साधने की रणनीति बनायी है। भाजपा ने प्रदेश के अपने 1471 तहसील मंडलों मंे खिचड़ी भोज का आयोजन करने की सूची बना ली है। भाजपा का अनुसूचित मोर्चा ही इस प्रकार के खिचड़ी भोज का अयोजन करेगा। भाजपा का लक्ष्य है कि इस प्रकार के खिचड़ी भोज मंे दलित समुदाय के साथ-साथ सभी वर्गों को भी बुलाया जाएगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सिद्धांत मंे भी दलितों से संबंध बढ़ाना शामिल है। संघ दलितों के गांवों मंे एक कुंआ, एक श्मशान और मंदिर प्रवेश को लेकर काम कर रहा है।


गत वर्ष अर्थात् 2018 मंे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मेरठ मंे राष्ट्रोदय के नाम से जो कार्यक्रम किया था, उसमंे छुआछूत और जातीय भेद मिटाने का आह्वान भी किया गया था। इसी के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी ने बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर और दलितों के मसीहा जैसे संत रविदास, महर्षि बाल्मीकि आदि की जयंती धूमधाम से मनाना शुरू किया। श्री मोदी ने विपक्ष को आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि केन्द्र सरकार अम्बेडकर के दिखाये रास्ते पर आगे बढ़ रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो रामायण कालीन युग को दोहराते हुए सभी वनवासियों और जनजातियों को भी हिन्दू धर्म से विशेष रूप से जोड़ा और हनुमान जी को भी दलित समुदाय का बताया था। इस पर बवाल भी हुआ था।


प्रदेश मंे सपा और बसपा का गठबंधन तोड़ने का प्रयास कई राजनेता कर रहे हैं। इनमें सपा प्रमुख अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल भी शामिल हैं। शिवपाल सिंह यादव ने प्रजातांत्रिक समाजवादी पार्टी बनायीा है और प्रदेश मंे सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा भी की है। उन्होंने बसपा पर आरोप लगाया है कि समाजवादी पार्टी का सम्मान नहीं करती, चुनाव मंे धोखा दे सकती है। इसी प्रकार भाजपा के नेता भी इसे बेमेल गठबंधन बताकर तोड़ने का प्रयास करते हैं लेकिन सपा और बसपा के जिम्मेदार छोटी-छोटी बात पर भी एक दूसरे का साथ देते हैं। लखनऊ मंे रिवर फ्रंट घोटाले मंे अखिलेश यादव का नाम उछाला गया तो बसपा ने इसका विरोध किया और स्मारकों के बनाने मंे घोटाले का आरोप लगा तो सपा के नेता विरोध मंे खड़े हो गये। इसी क्रम मंे विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने पर प्रदेश मंे आवारा जानवरों से हो रही किसानों की
परेशानी और अवैध खनन की खुली लूट जैसे मुद्दों को लेकर सपा विधायकों ने योगी सरकार को घेरा तो बसपा के विधायक भी उनके साथ ही राज्यपाल पर कागज के गोले फेंक रहे थे। विधानसभा मंे लाल और नीली टोपी पहने विधायकों की एकजुटता साफ दिख रही थी।
योगी आदित्यनाथ इसी एकजुटता को कमजोर करना चाहते हैं और इसके लिए दलितों को भाजपा के पक्ष में लाने का प्रयास किया जाएगा। दलितों


के लिए सवर्णों से ज्यादा पिछड़ो वर्ग की एक विशेष जाति के लोग आक्रामक रहते हैं और भाजपा की सहानुभूति मिलते ही दलितों का वह वर्ग सपा-बसपा गठबंधन को छोड़ भी सकता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ संघ की विचारधारा को महत्व देते हुए हिन्दुओं की एकता के पक्षधर हैं। ऊंच-नीच और भेदभाव के चलते ही हिन्दुओं का दलित वर्ग ईसाई मिशनरियों के प्रभाव मंे आया और क्रिश्चियन बन चुका है। इसलिए दलितों के साथ मेलजोल बढ़ाना हिन्दू समाज के लिए भी जरूरी है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने दलितों को समाज की मुख्यधारा मंे शामिल करने के लिए कहा था कि दलितों को अपने समारोह मंे बुलाना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि दलितों के समारोह मंे सवर्ण बड़ी संख्या मंे शामिल होंगे तभी भेदभाव का अंतर कम होगा। भाजपा के दलित मोर्चे ने इसीलिए प्रदेश मंे खिचड़ी भोज का वृहद स्तर पर आयोजन प्रारम्भ किया है। शहरों और कस्बों को छोड़कर गांव स्तर पर इस तरह के खिचड़ी भोज निश्चित रूप से दलितों को भाजपा से जोड़ेंगे। योगी आदित्यनाथ की यह येाजना तभी सफल होगी जब खिचड़ी दलितों के घर पके और ऊंची जाति के लोग वहीं बैठकर उसे खाएं। (हिफी)